(राष्ट्रीय मुद्दे) महिला सशक्तिकरण: बदलती तस्वीर? (Women Empowerment : Changing Scenario?)
एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)
अतिथि (Guest): जगमति सांगवान (सामाजिक कार्यकर्त्ता), मनीषा भल्ला (महिला अधिकारों पर काम करने वाली पत्रकार)
सन्दर्भ:
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय महिलाओं की स्थिति सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य सूचकों के रूप में पहले से बेहतर हुई है। जून 2018 में आई सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे के मुताबिक 2013 से भारत में मातृ मृत्यु दर में क़रीब 22% की कमी दर्ज़ की गई है। महिलाओं को प्रसव के दौरान मिलने वाली मैटरनिटी लीव को भी बढ़ाकर 6 महीने कर दिया गया है और सरकारी अस्पतालों में सुरक्षित प्रसव कराने पर जोर दिया जा रहा है।
इसके अलावा कन्या भ्रूण हत्या और महिला अपराधों में भी काफी कमी आई है। 2012 में हुए निर्भया काण्ड के बाद रेप, हिंसा और छेड़छाड़ के कानूनों को और ज़्यादा सख्त बनाया गया है । नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ो के अनुसार महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की रिपोर्टिंग पहले से अधिक हो रही है,जबकि अलग-अलग कारणों से ये रिपोर्ट पहले काफी कम दर्ज की जातीं थी।
आर्थिक मोर्चे पर महिलओं को मज़बूत बनाने के लिए उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के ज़रिये महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जा रही है । प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, स्टैंड-अप इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका के तहत स्वयं सहायता समूह योजना भी महिलाओं को वित्तीय रूप से सुरक्षित और स्वतंत्र बनाने में सहयोग कर रही है।
लड़कियों और महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए सुकन्या समृद्धि और जन-धन योजना जैसे कायर्क्रम भी चलाए जा रहे हैं। जहां जन-धन योजना के तहत करीब आधे से ज़्यादा बैंक अकाउंट महिलाओं द्वारा ही खुलवाए गए हैं । इसके साथ ही महिलाओं को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए लगभग 7.88 करोड़ महिला उद्यमियों को करीब सवा 2 लाख करोड़ का लोन उपलब्ध कराया गया।
महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून, ऑनलाइन शिकायत प्रणाली, महिला हेल्पलाइन और पैनिक बटन जैसे प्रयोग किए गए हैं। इसके अलावा महिला सशक्तीकरण के लिहाज से सबसे ज़रूरी तीन तलाक प्रथा को भी ख़त्म करने की कोशिश चल रही है।
शिक्षा के स्तर पर भी बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम के ज़रिये स्कूलों में लड़कियों और लड़कों का बराबरी पर दाखिला हुआ है। राजीतिक स्तर पर भी महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए पंचायती चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का नियम तैयार किया गया है, जबकि कुछ राज्यों में आरक्षण का ये प्रतिशत 50 फीसदी तक कर दिया गया है।
इसके अलावा महिलाओं को और सशक्त बनाने के लिए महिला आरक्षण बिल को पारित कराने की करीब दो दशक से तैयारी चल रही है। इस विधेयक को साल 1996 में महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण के लिए पेश किया था। महिला आरक्षण विधेयक को 6 मई 2008 को राज्यसभा में प्रस्तुत किए जाने के 2 साल बाद 9 मार्च 2010 को इसे राज्यसभा से पारित करा लिया गया। लेकिन लोकसभा में पर्याप्त सदस्यों की संख्या न होने के कारण इस विधेयक पर अभी तक कोई कानून नहीं बनाया जा सका है।
संसद के निचले सदन लोकसभा में सिर्फ 12 फीसदी महिला सांसद हैं, जबकि राज्य सभा में भी ये संख्या महज 12.8 फीसदी ही है जोकि वैश्विक औसत 22 प्रतिशत से काफी कम है। 2017 में आई इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन की रिपोर्ट के मुताबिक भी भारतीय संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व स्तर काफी नीचे है। जहां दुनिया के कुल 193 देशों में भारत की रैंकिंग 147वें नंबर पर है।
भारत में महिलाओं के काम में भागीदारी का प्रतिशत भी सिर्फ 26 फीसदी ही है। जबकि भारत में महिलाओं की हिस्सेदारी कुल जनसंख्या का करीब 48 फीसदी है। रोजगार में महिलों की इस स्थिति के कारण भारत ब्राज़ील श्रीलंका और इंडोनेशिया जैसे देशों से भी पिछड़ा हुआ है। इसके साथ ही महिला स्वास्थ्य के लिहाज से भारत में मातृ-मृत्यु दर नेपाल और श्रीलंका जैसे कम विकसित देशों से भी अधिक है, जोकि महिला सशक्तीकरण के लिए गंभीर चुनौती है ।